Taitanic Real Story in Hindi (Taitanic History) : Taitanic ship ( की कहानी )
बता दें कि टाइटेनिक सबसे बडा यात्री जहाज था। 10 अप्रैल 1912 को सॉउथहेम्पटन से न्यूयोर्क के लिए रवाना हुआ था। चार दिन की यात्रा के बाद, 14 अप्रैल 1912 को वह एक आइसबर्ग से टकरा कर डूब गया। 1,517 लोगों की मौत हो गयी। और टाइटैनिक का पहला सफर ही उसका सफर आखिरी बन गया। समुद्र तले दफ़न एक रहस्य इतिहास के पंनो में, दर्ज एक ऐसी दुखद घटना है। जिसने सम्पूर्ण विश्व को हिला कर रख दिया यह घटना उस जहाज की है, जिसे सदी का सबसे बड़ा जहाज कहा जाता था। इसका नाम है, RMS TAITANIC...
Taitanic Real Story in Hindi :
दोस्तों टाइटैनिक की कहानी शुरू होती है। 19वीं शताव्दी की शुरुवात से उस समय जर्मन और ब्रिटिश में होड़ मची थी, बड़े-बड़े जहाज का निर्माण करने की, इसमें ब्रिटेन सरकार ने एक ऐसा जहाज बनाने का फैसला लिया जिसकी सजावट और कद एक आलिशान महल से भी बड़ा हो। और वो उस सदी का सबसे बड़ा जहाज कहलाये। इसीलिए ब्रिटेन सरकार ने फाइवस्टार लाइव कंपनी को जहाज बनाने के लिए करोड़ो डॉलर का लोन दिया। इसके बाद 31 मार्च 1909 में नॉर्थ आयलैंड के बेलफ़ास्ट में शुरू हुआ, टाइटेनिक का निर्माण। लगभग 15,000 इंजीनियर और कारीगरों ने तीन साल कड़ी मेहनत करके पानी में चलता एक भव्य और आलिशान जहाज तैयार किया।
उस जहाज को 16 अलग-अलग कम्पार्टमेंट में बनाया गया था। जो पूरी तरह से वाटर टाइट थे , इसकी इसी खूबी के कारण ही, इसे unscepival जहाज कहा जाता था। 2 अप्रैल 1912 को टाइटैनिक बनकर तैयार हो चुका था। इस जहाज की भव्यता का एहसास जितना बहार से होता था, अंदर जाकर वो दोगुना हो जाता था। फाइवस्टार लाइव ने जब यूरोप और अमेरिका के बीच टाइटैनिक की सेवाओं का ऐलान किया तो लोग इसकी पहली यात्रा को लेकर रोमांचित हो उठे,
10 अप्रैल 1912 को टाइटैनिक 920 यात्रियों के साथ इंग्लैंड़ के साऊथ हैम्पंटन से न्यूयोर्क की तरफ निकल पड़ा। कहा जाता है ! जिस समय टाइटैनिक अपनी पहली यात्रा के लिए तैयार था, इसे देखने के लिए 1 लाख से ज्यादा लोग बंदरगाह पर आये थे। साऊथ हैम्पंटन से निकलकर टाइटैनिक 42km/घण्टा की रफ़्तार से शाम को Cher Bourg France पहुंचा, और यहां से 274 यात्रियों को लेकर टाइटैनिक एक Queenstown Ireland पहुंचा और यहां से भी 123 यात्रियों को लेकर टाइटैनिक अपने अंतिम समय पर न्यूयौर्क के लिए रबाना हुआ। टाइटैनिक जब आयरलैंड से निकला तब टाइटैनिक को उसके रास्ते पर Iceberg मौजूद होने की, पहली चेतावनी मिली।
लेकिन जहाज के कप्तान एडवर्ड जोन्स स्मिथ ने इस चेताबनी पर कुछ खाश ध्यान नहीं दिया। और जहाज की रफ़्तार काम नहीं की, जो की अपनी फुलस्पीड में समुद्र को चीरता हुआ, आगे बढ़ रहा था। रात होते -होते कप्तान एडवर्ड जॉन को लगभग छः चेतावनी वाले सन्देश अन्य जहाजों द्वारा दिए जा चुके थे। लेकिन कप्तान स्मिथ न ही जहाज की रफ़्तार कम करना चाहते थे। और न ही इस चेतावनी को गंभीरता से लेने वाले थे। क्योकि कप्तान स्मिथ अपने आखिरी रिटायरमेंट और टाइटैनिक की प्रतिष्ठा में और रिकॉर्ड जोड़ना चाहते थे।वे टाइटैनिक को विशाल जहाज होने के साथ इस सदी का सबसे तेज जहाज होने का दर्जा भी दिलबाना चाहते थे।
Taitanic Real Story in Hindi | Taitanic History Taitanic ship ( की कहानी ) |
Taitanic Real Story in Hindi | Taitanic History Taitanic ship ( की कहानी )
14 अप्रैल की उस अँधेरी रात को कैप्टन स्मिथ ने सुरक्षा बरतने के लिए जहाज के दो क्रू मेम्बर्स फ्रेडरिक फलीट और रेगनान्ड ली को जहाज के ऊपर निगरानी के लिए तैनात किया। ताकि वो किसी भी खतरे की जानकारी तुरंत कैप्टन को दे सकें। उस रात समुन्द्र एकदम शांत था। आसमान में चाँद नहीं था। इसलिए उन्हें तारों की हल्की रोशनी ही मिल रही थी। तभी अचानक 11:39 पर निगरानी पर तैनात फ्रेडरिक फ्लीट ने जहाज के ठीक सामने एक काला सा पहाड़ देखा। उन्हें बर्फ की चट्टान नहीं दिखी, यह देख फ्रेडरिक तुरंत समझ गया, कि टाइटैनिक के सामने एक विशाल आइस बर्ग है, फ्रेडरिक फ्लीट ने एक छड़ भी न गवाते हुए घंण्टा बजा दिया। और फिर तुरंत फोन पर खबर दी बर्फ की चट्टान बिल्कुल सामने है। ये सुनते ही सारे अफसर जहाज को मोड़ने की कोशिश करने लगे।
अचानक हुए डिसीजन से कैप्टन ने उस टाइटेनिक को उसके आइसबर्ग से दूर ले जाने की सारी कोशिशें की। लेकिन अफसोस 11:40 मिनट पर जहाज के राइट साइड का निचला हिस्सा उस बड़े आइसबर्ग से टकरा गया। टकराव इतना जोरदार था। कि इसने थर्ड क्लास में रहने वाले यात्रियों को एक बड़ा जोरदार झटका दे दिया था। यात्रियों को पता उस वक्त लगा जब टाइटैनिक को एक जगह पर रोक दिया गया। और इंजन बंद कर दिए गए।जैसे ही यह खबर फैली की जहाज टकरा गया है। तो लोग यहां वहां भागने लगे पूरे जहां पर खौफ का माहौल था। जब टाइटैनिक आइसबर्ग से टकराया था। तो उसमे दबाब के कारण जहाज की निचले हिस्से की प्लेट को चीर दिया था। जिससे जहाज की दायी साइड में 300 फ़ीट तक की कीले बाहर आ गयी था। कीले बहार आ जाने से आपस में जुडी प्लेट सरक गयी। और पानी तेजी से अंदर आने लगा। वही जब जहाज के निचले हिस्से में पानी भरना शुरू हुआ। तो थर्ड क्लास में रहने वाले सभी यात्री ऊपर की ओर भागने लगे।
इस घटना से चिंतित होकर,टाइटैनिक की डिजाइनर थॉमस एडियोस ने कैप्टन स्मिथ को बताया। की जहाज के 5 कंपार्टमेंट में पानी भर चुका है। और कुछ ही समय में पानी डैक के ऊपर से बहते हुए एक-एक करके सारे कंपार्टमेंट में भर जाएगा। जिसके बाद सभी लाइफबोर्डस को बहार निकाला जाने लगा। लेकिन उस समय टाइटैनिक पर केवल 20 ही लाइफबोर्ड्स मौजूद थी। जिसकी केपिसिटी लगभग 65 यात्रियों की थी। लेकिन अफरा-तफरी और घबराहट में लाइफबोर्डस में केवल 28 -30 यात्रियों को ही चढ़ाया गया। इस बात पर सवाल भी उठे की कैप्टन होने के नाते,स्मिथ को इस बात की जानकारी थी। कि जहाज में कितने यात्री है। और कितनी लाइफबोर्डस है। फिर भी कई नावों को बगैर पूरी तरह भरे जाने दिया गया। और इसी वजह से ज्यादा लोगों की जानें गई।
आज जहाज पर चारों तरफ खौफ का माहौल था।लेकिन इसी बीच वहां मौजूद म्यूजिशियंस का एक दल अपनी जिंदगी की परवाह ना करते हुए मौत से बेखौफ होकर। अपनी आखिरी सांस तक संगीत की धुन को बजाते रहे। ताकि मरने वाले अपने आखिरी पल कुछ खुशी से बिता सकें। दूसरी तरफ जहाज में 5 से ज्यादा कंपार्टमेंट में पानी भरने से जहाज के आगे का हिस्सा 10 डिग्री तक डूब चुका था। जिससे जहाज के पीछे वाला भाग ऊपर उठने लगा। लगातार बढ़ते दबाव के कारण 2:20 मिनट पर टाइटेनिक बीच से टूटकर अलग हो गया। मात्र 2 घंटे 40 मिनट में कभी न टूटने वाला टाइटेनिक अपनी पहली ही यात्रा में अटलांटिक महासागर की गोद में समा गया था। इस दुखद घटना में 1517 लोगों की जान गई इसमें से अधिकतर लोग डूबने से नहीं बल्कि 2 डिग्री सेल्सियस के ठंडे पानी में जमने के कारण मारे गए थे,लोगों को बचा लिया गया था।
टाइटैनिक के डूबने से लेकर आज तक उसके डूबने के लिए अलग-अलग थ्योरी सामने आती रही है। जिसमें कोई थ्योरी इस घटना के लिए कैप्टन स्मिथ को जिम्मेदार ठहराते है। तो कोई थ्योरी टाइटैनिक की बनावट और उस में इस्तेमाल किए गए मटेरियल को घटिया बताकर उसे इसका जिम्मेदार साबित करती थी। लेकिन 2010 में शुरू किए गए एक प्रोजेक्ट के तहत टाइटैनिक के डूबने की असली वजह जानने के लिए, शोधकर्ताओं की एक टीम ने लाखों डॉलर के आधुनिक रोबोट डेफिनेशन वाले कैमरे की मदद से नॉर्थ अटलांटिक ओशियन में रेडार तकनीक से स्कैन करके 15 किलोमीटर के क्षेत्र का एक मैप बनाकर। टाइटैनिक के हर छोटे बड़े टुकड़ों की 150000 फोटोस और वीडियो इकट्ठा करके टाइटैनिक के मलबे के हर छोटे बड़े टुकड़ों का अध्ययन किया। और लगभग 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद सन् 2012 में स्टीम ने टाइटेनिक को वर्चुअली तैयार करके इस के डूबने की असली वजह को जानने का प्रयास किया।
टाइटैनिक के डिजायन और उसको बनाने में इस्तेमाल मटेरियल पर एक्सपेरिमेंट करने के बाद टीम ने पाया कि। टाइटेनिक डिजाइन में कोई कमी नहीं थी। और ना ही उसमें इस्तेमाल किया गया मटेरियल घटिया क़्वालिटी का था। टाइटैनिक के डूबने का मुख्य कारण उसकी तेज रफ्तार थी। क्योंकि तेज रफ्तार से जब आइसबर्ग टकराया तो, उससे हजारों टन का दबाव जहाज के निचले हिस्से पर पड़ा। और इससे दबाव वाली जगह पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई और फिर जहाज के पांच कंपार्टमेंट में पानी भर जाने से जहाज आगे से डूब गया।
आज टाइटेनिक का मलबा केनेडा न्यूफाउंडलैंड से करीब 600 किलोमीटर दूर 4 किलोमीटर नीचे गहराई में पड़ा हुआ है। जिसकी तलाश एक अर्से से होती रही है। लेकिन कामयाबी 1985 में मिली उसके बाद से अभी तक 700 से भी ज्यादा तेराक इस ऐतिहासिक मलबे के पास जा चुके हैं। हालांकि 100 साल पूरे होने से इसे पानी के नीचे की धरोहर में शामिल कर लिया गया है। जिसके बाद टाइटैनिक के मलबे का संरक्षण अब सयुंक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक एजेंसी करती है। ताकि इसके मलबे को गैर वैज्ञानिक और अनैतिक खोजों से बचाया जा सके। खैर अभी तो 100 साल ही हुए हैं, हो सकता है। आने वाली सदियों में समुद्र से टाइटेनिक के ये निशान भी खत्म हो जाये। लेकिन कोई भी आइसबर्ग उस टाइटेनिक को नहीं डूबा सकता, जो करोड़ों अरबों दिलों में तैर रहा है। तो दोस्तों आपको ये जानकारी किसी लगी कमेंट करके जरूर बताये।
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