Ramayan Chaupai in Hindi | रामायण चौपाई हिंदी अर्थ सहित
भारतवर्ष एक बहुत ही पवित्र धरती है , यहाँ पर बहुत से ऐसे महान संत महात्मा, भगवान ने भारतवर्ष में जन्म लेकर इस धरती को महान बनाया है। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण , शिव शंकर , माता लक्ष्मी , इसके साथ साथ यहाँ पर अपने देश की शोभा बढ़ाने के लिए ऋषि मुनियों के पवन चरण , गायक , कवि ने भी भारतवर्ष की शोभा बढ़ायी है, इनमे से तुलसीदास , कबीरदास, वाल्मीकि जी जैसे महान व्यक्तियो ने इस धरती की शोभा बढ़ायी है।
रामायण चौपाई इन हिंदी
रामायण महाकाव्य ने व्यक्तियो के जीवन को एक ऐसी राह दिखाई है जिससे व्यक्ति अपने जीवन को माया रूपी भव सागर से निकाल कर मोक्ष प्राप्त कर सकते है।
Ramayan Chaupai with Hindi Meaning
श्री राम चरित मानस में कई अध्याय का संग्रह है, हर अध्याय को कांड से भी जाना जाता है। जैसे 5 वा अध्याय/कांड है। जैसा कि ज्ञात है सुन्दर कांड (Sundar Kand) को सबसे पहले रामायण में श्री वाल्मीकि जी ने संस्कृत में लिखा था। और बाद में तुलसी दस जी ने जब श्री राम चरित मानस लिखी, तो सुन्दर कांड का अवधी भाषा में हम सब के सामने आया जो की सबसे प्रचलित है|
रामचरितमानस में छंदों की संख्या
अपने मौजूदा रूप में, वाल्मीकि की रामायण लगभग २४,००० छंदों की एक महाकाव्य कविता है, जो सात कांडों (बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किन्दकाश, सुंदरकांड, युद्धकांड, उत्तरकांड) और लगभग ५०० सर्गों में विभाजित है।
रामचरितमानस, अवधी भाषा में एक महाकाव्य कविता है, जिसकी रचना १६वीं शताब्दी के भारतीय भक्ति कवि तुलसीदास ने की थी। रामचरितमानस शब्द का शाब्दिक अर्थ है "राम के कर्मों की झील"। इसे हिंदू साहित्य की सबसे बड़ी कृतियों में से एक माना जाता है
|| रामायण चौपाई हिंदी अर्थ सहित ||
बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई।।
अर्थ :तुलसीदास जी कहते है, सत्संग के बिना विवेक नहीं आता और राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं होता, सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। दुष्ट भी सत्संगति पाकर वैसे ही सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है।
रामायण की चौपाई हिंदी में
जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
अर्थ : तुलसीदास जी कहते है कि जिन पर भगवान राम की कृपा होती है, उन्हें कोई सांसारिक दुःख छू तक नहीं सकता। और जिस पर परमात्मा की कृपा हो जाती है उस पर तो सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । जिनके अंदर कपट, पाखंड, झूठ और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में रघुपति राम बसते हैं अर्थात उनके पर प्रभु की कृपा सदैव होती है।
रामायण की चौपाई अर्थ सहित
अनुचित उचित काज कछु होई,
समुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं,
कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।
अर्थ: उसी को सभी लोग भला कहते हैं, जो किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह पहले जानकर करता है । ऐसे लोग जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं, उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं मानता।
रामायण चौपाई सुंदरकांड
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
अर्थ : तुलसीदास जी कहते है कि, हरि अनंत हैं अर्थात उनका कोई पार नहीं पा सकता और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। भगवान श्री रामचंद्र के सुंदर चरित्र का कोई बखान नहीं कर सकता क्युकि सुंदर चरित्र को करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।
Ramayan Chaupai in Hindi
जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥
अर्थ :हे भवानी सुनो जिनका नाम जपकर ज्ञानी मनुष्य संसार रूपी जन्म-मरण के बंधन को काट डालते हैं, क्या उनका दूत किसी बंधन में बंध सकता है? लेकिन प्रभु के कार्य के लिए हनुमान जी ने स्वयं को शत्रु के हाथ से बंधवा लिया।
रामायण चौपाई
एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥
अर्थ : रामचरितमानस में श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, मंगल (कल्याण) करने वाला और अमंगल को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित भगवान शिवजी सदा जपा करते हैं।
रामायण चौपाई हिंदी अर्थ सहित
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तुम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान॥
अर्थ : मोह ही जिनका मूल आधार है, ऐसे अज्ञानजनित, बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का हमें त्याग कर चाहिए और रघुकुल के स्वामी, कृपा के समुद्र भगवान श्री रामचंद्रजी का भजन करना चाहिए।
Ramayan Chaupai in Hindi
कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥
अर्थ : हे भगवान श्री राम ! आपको मेरा प्रणाम और आपसे निवेदन है - हे प्रभु! यद्यपि आप सब प्रकार से पूर्ण हैं अर्थात आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है, तथापि दीन-दुःखियों पर दया करना आपका प्रकृति है, अतः हे नाथ ! आप मेरे भारी संकट को हर लीजिए |
Ramayan Chaupai in Hindi
करमनास जल सुरसरि परई,
तेहि काे कहहु शीश नहिं धरई।
उलटा नाम जपत जग जाना,
बालमीकि भये ब्रह्मसमाना।।
अर्थ: तुलसीदास कहते है कि कर्मनास का जल (जो कि अशुद्ध से अशुद्ध जल) यदि गंगा में पड़ जाए तो उसे कौन सिर नहीं पर रखता है? अर्थात अशुद्ध जल भी गंगा के साथ मिलकर गंगा के समान पवित्र हो जाता है। सारे संसार को विदित है की उल्टा नाम का जाप करके वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए।
रामायण दोहा और उनका अर्थ
अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर,
भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
काम क्रोध मद गज पंचानन,
बसहु निरंतर जन मन कानन।।
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि हे गुणों के मंदिर ! आप सगुण और निर्गुण दोनों है। आपका प्रबल प्रताप सूर्य के प्रकाश के समान काम, क्रोध, मद और अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करने वाला है। आप सर्वदा ही अपने भक्तजनों के मनरूपी वन में निवास करने वाले हैं।
Ramcharitmanas Ki Chaupai
ह्रदय बिचारति बारहिं बारा,
कवन भाँति लंकापति मारा।
अति सुकुमार जुगल मम बारे,
निशाचर सुभट महाबल भारे।।
अर्थ: तुलसीदास जी भगवान श्री का बखान करते हुए कहते है, जब श्रीरामचंद्रजी रावण का वध करके वापस अयोध्या लौटते हैं, तब माता कौशल्या अपने हृदय में बार-बार यह विचार कर रही हैं कि मेरे दोनों बालक तो अत्यंत सुकुमार हैं फिर भी इन्होंने रावण को कैसे मारा होगा में यह सोच कर परेशान हू। क्युकि राक्षस योद्धा तो महाबलवान थे। इस सबके अतिरिक्त लक्ष्मण और सीता सहित प्रभु राम जी को देखकर मन ही मन परमानंद में मग्न हो रही हैं।
Ramcharitmanas Ki Chaupai in Hindi Me
अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर,
भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
काम क्रोध मद गज पंचानन,
बसहु निरंतर जन मन कानन।।
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि हे गुणों के मंदिर ! आप सगुण और निर्गुण दोनों है। आपका प्रबल प्रताप सूर्य के प्रकाश के समान काम, क्रोध, मद और अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करने वाला है। आप सर्वदा ही अपने भक्तजनों के मनरूपी वन में निवास करने वाले हैं।
रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥
अर्थ : तुलसीदास जी कहते है कि पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि और कुबुद्धि सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख की स्थिति) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ विभिन्न प्रकार की विपत्ति (दुःख) का वाश होता है। इसलिए सुबुद्धि रखकर जीवन में सुखद अनुभव करना चाहिए।
रामचरितमानस चौपाई और उनका अर्थ
धन्य देश सो जहं सुरसरी।
धन्य नारी पतिव्रत अनुसारी॥
धन्य सो भूपु नीति जो करई।
धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई॥
अर्थ : वह देश धन्य है, जहां गंगा जी बहती हैं। वह स्त्री धन्य है जो पतिव्रत धर्म का पालन करती है। वह राजा धन्य है जो न्याय करता है और वह ब्राह्मण धन्य है जो अपने धर्म से नहीं डिगता है।
रामायण चौपाई हिंदी में
श्याम गात राजीव बिलोचन,
दीन बंधु प्रणतारति मोचन।
अनुज जानकी सहित निरंतर,
बसहु राम नृप मम उर अन्दर।।
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि हे श्रीरामचंद्रजी, आप दीनबंधु, श्यामल शरीर, कमल के समान नेत्र वाले और संकट को हरने वाले हैं। हे राजा रामचंद्रजी आप निरंतर लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
रामायण चौपाई अर्थ सहित
सो धन धन्य प्रथम गति जाकी।
धन्य पुन्य रत मति सोई पाकी॥
धन्य घरी सोई जब सतसंगा।
धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥
अर्थ : वह धन धन्य है, जिसकी पहली गति होती है (जो दान देने में व्यय होता है) वही बुद्धि धन्य है, जो पुण्य में लगी हुई है। वही घड़ी धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमें ब्राह्मण की अखंड भक्ति हो। धन की तीन गतियां होती हैं - दान, भोग और नाश। दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है। जो पुरुष ना देता है, ना भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।
Ramayan Chaupai in Hindi
एहि तन कर फल बिषय न भाई।
स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं।
पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥
अर्थ : हे भाई! इस शरीर के प्राप्त होने का फल विषयभोग नहीं है (इस जगत् के भोगों की तो बात ही क्या) स्वर्ग का भोग भी बहुत थोड़ा है और अंत में दुःख देने वाला है। अतः जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषयों में मन लगा देते हैं, वे मूर्ख अमृत को बदलकर विष पी लेते हैं।
रामायण की चौपाई
होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा।
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥
अर्थ :तुलसीदास जी कहते कि, जो कुछ इस संसार में राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा बढ़ावे। अर्थात इस विषय में तर्क करने से कोई लाभ नहीं। ऐसा कहकर भगवान शिव हरि का नाम जपने लगे और सती वहाँ गईं जहाँ सुख के धाम प्रभु राम थे।
रामायण इतिहास की शैली से संबंधित है, अतीत की घटनाओं के आख्यान (पुरावित), जिसमें महाभारत, पुराण और रामायण शामिल हैं। शैली में मानव जीवन के लक्ष्यों पर शिक्षाएं भी शामिल हैं। यह आदर्श पिता, आदर्श सेवक, आदर्श भाई, आदर्श पति और आदर्श राजा जैसे आदर्श चरित्रों को चित्रित करते हुए रिश्तों के कर्तव्यों को दर्शाता है। महाभारत की तरह, रामायण प्राचीन हिंदू संतों की शिक्षाओं को कथा रूपक में प्रस्तुत करता है, दार्शनिक और नैतिक तत्वों को परस्पर जोड़ता है
दोस्तों रामचरितमानस के दोहे आपको कैसे लगे कमेंट करे।
Jai shree ram
ReplyDeleteWe understand what you’re going through http://chinesebuffetnearmenow.net/ and will do whatever we can to help you on your road to recovery.
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